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Showing posts from March, 2018

BEAUTY OF GHEE :

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1) Ghee can tolerate heat, as on heating it become more pure (highest smoke point) while oils especially vegetable seed oil containing more unsaturated fatty acids (MUFA AND PUFA) oxidizes at high temperature and releases free radicals and damages our body tissues.  2) Ghee puts flavour to our food and stimulate satiety signals early. Addition of ghee to food prevent us from overeating. 3) Ghee contain unique short chain fatty acids (SCFA) which breaks very fast in our body. Short chain fatty acids present in ghee and milk and medium chain fatty acids present in coconut does not require lymphatic channel for transportation and metabolized in liver directly to produce energy. 4) Ghee increases our gastric fire to digest food better. 5) Ghee helps in providing our gut good bacteria. Short chain fatty acids (SCFA) present in ghee is now recognised as Pre-biotic. Ghee helps in better digestion and absorption of food. Ghee thus relieves symptoms like blotting and constipat

पित्तामुळेच डोके दुखते व नंतर मळमळ होते

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अपुरी झोप, तणावग्रस्त जीवनशैली , अरबट-चरबट फास्ट फूड खाणे अशा एक ना अनेक कारणांनी शरीरात पित्ताचे दोष निर्माण होतात . तीव्र डोकेदुखी , छातीत जळजळ ,उलट्या होणे ,अस्वस्थ वाटणे अशी पित्ताची लक्षणे दिसून येतात . मग पित्तावर उपाय म्हणून बाजारात उपलब्ध असलेली विविध रूपातील ‘एन्टासिड्स'(आम्लता नष्ट करणारा अल्कलाइन पदार्थ) ही निष्फळ ठरतात , तेव्हा... आरामदायी केळं :केळ्यातून शरीराला उच्च प्रतीच्या पोटॅशियमचा पुरवठा होतो त्यामुळे पोटात आम्ल (acid ) निर्मितीची प्रक्रिया मंदावते . तसेच ‘फायबर’ शरीराची पचनक्रिया सुलभ करते. फळांमधील काही विशिष्ट घटकांमुळे अम्लांच्या विघातक परिणामांपासून आपले रक्षण होते.पित्त झाल्यास पिकलेले केळ खाल्याने आराम मिळतो. केळ्यातील पोटॅशियम विषहारक द्रव्य म्हणून काम करते व पित्ताचा त्रास कमी होतो. फायदेशीर तुळस :तुळशीमधील एन्टी अल्सर घटक पोटातील / जठरातील अम्लातून तयार होणाऱ्या विषारी घटकांपासून बचाव करते.तुम्हाला पित्ताचा त्रास जाणवत असल्यास किंवा अस्वस्थ वाटत असेल तर ४-५ तुळशीची पाने चावून खा . अमृतरुपी दुध :दुधातील कॅल्शियमच्या घटकांमुळे पोटात तयार होणा

हीमोग्लोबिन

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हीमोग्लोबिन अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में बनने वाला रक्त कोशिका का लोहयुक्त एवं ऑक्सीजन वाहक वर्णक होता है जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।यह प्रोटीन का एक अत्यधिक जटिल (Complex) रूप है, इसमे 96% भाग ग्लोबिन तथा 4% भाग हिम होता है। हीमोग्लोबिन के कार्य  इसका मुख्य कार्य ऑक्सीजन को फेफड़ो से ऊतकों तथा ऊतकों से कार्बन डाइऑक्सइड को फेफड़ो में पहुँचाना है। इस क्रिया में हीमोग्लोबिन का हिम भाग फेफड़ो की ऑक्सीजन से संयोजित होता है जिससे ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनता है, जो अस्थायी योगिक है। ऑक्सी हैमोग्लोबिन के ऊतकों में पहुचने पर जहा पर ऑक्सीजन का तनाव कम होता है और कार्बन डाइऑक्सीसाइड का बढ़ा होता है, इससे ओक्सिजन मुक्त हो जाती है तथा कार्बन डाइओक्साइड संयोजित हो जाती है जो परिसंचारित रक्त के साथ फेफड़ो में पहुँच कर हीमोग्लोबिन से अलग हो जाती है और निःश्वसन में फेफड़ो से बाहर निकल जाती है। हीमोग्लोबिन के द्धारा ऑक्सीजन प्रकार के लेंन-देन का क्रम जीवित अवस्था में निरंतर चलता रहता है। हीमोग्लोबिन से जुड़ी समस्याएं हीमोग्लोबिन से जुड़ी समस्याओं में असामान्य हीमोग्लोबिन, गुर्दों का क

बालों का झड़ना [Hair Fall]

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सामान्यतः प्रतिदिन हमारे लगभग 50 से 100 बाल हर दिन टूटते-झड़ते हैं। यदि इससे ज्यादा बाल झड़ते (Hair Fall) हैं, तो यह चिंता का विषय है। बाल झड़ने के पीछे तनाव, इन्फेक्शन, हार्मोन्स का असंतुलन, पोषक पदार्थों की कमी, दवाओं के साइड इफेक्ट्स, लापरवाही बरतना या बालों की सही देखभाल न करना, घटिया साबुन और शैंपू का प्रयोग आदि कई कारण हो सकते हैं।  कब-कब झड़ सकते हैं बाल: चिकित्सा विज्ञान के आधार पर बालों के झड़ने की कई वजहें होती हैं। जिनमें से कुछ खास कारण निम्न हैं:   लंबी बीमारी, बड़े ऑपरेशन या किसी गभीर संक्रमण के कारण बालों का झड़ना सामान्य माना जाता है। शारीरिक, मानसिक तनाव या डिप्रेशन की बीमारी के दो या तीन महीने के बाद बालों का झड़ना एक सामान्य प्रक्रिया है। हार्मोन स्तर में आकस्मिक बदलाव के बाद भी यह हो सकता है, विशेषकर स्त्रियों में बच्चें के जन्म के बाद यह हो सकता है। अत्यधिक द्वाईंयों के सेवन से या किसी एलर्जी के कारण भी कई बार बाल झड़ते हैं। बालों का झड़ना कई बीमारियों का लक्षण भी माना जाता है विशेषकर थाइरॉयड में यह महत्वपूर्ण निशानी माना जाता है।  सेक्स हार्मोन में असंतु

अनिद्रा

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Insomnia निद्रा शरीर की सबसे प्रधान आवश्यकता है. नींद आने पर ही शरीर का हर कार्य सुनियंत्रित रहता है. आज के समय में जितनी तकनीकी प्रगति मनुष्य ना कर ली है, उसके बदले में अपनी नींद गवाकर बहुत बड़ी कीमत भी चुकाई है. आज का इंसान ईंट और सेमेंट से बनी दीवारों में घिरकर रह गया है और धूप, शुद्ध जल, शुद्ध हवा के लिए बस तरस कर ही रह गया है. अब उसे पक्षियों की चहचहाहट नही सुनाई देती अपितु गाड़ियों के हॉर्न, पेट्रोल का धुआँ यही नवीन मनुष्य की किस्मत में रह गया है. प्रकृति से इतना दूर हो जाने से सीधा प्रभाव मनुष्य की नींद पर पड़ता है. इसके अलावा भोजन और दिनचर्या का भी असर मनुष्य की नींद पर प्रमुख तौर पर देखने को मिलता है. हर व्यक्ति की निद्रा की आवश्यकता अलग-अलग होती है. कुछ लोग सिर्फ़ 6 घंटे की नींद से तरो-ताज़ा महसूस करते हैं जबकि कइयों में यह आवश्यकता 10 घंटे तक भी जाती है. पर औसतन मनुष्य 6-8 घंटे तक ही सोते हैं. अनिद्रा के कारण काम करते वक़्त तनाव बढ़ जाता है अत्यंत दुष्कर स्थिति की तरह प्रतीत होता है. अनिद्रा के कारण अनिद्रा के अनेक कारण हैं. परंतु मुख्य कारण मानसिक परेशा

हृदयरोग

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[Heart Or Cardiovascular Diseases] हृदयरोग आज के युग में मृत्यु का प्रमुख कारण है. पहले यह समस्या समृद्ध देशों में अधिक पाई जाती थी परंतु अब इसका प्रकोप प्रगतिशील देशों में भी देखने को मिलता है. उच्च रक्तचाप , मधुमेह, परिवारिक आनुवांशिक कारण, धूम्रपान, ये सब इस रोग की संभावना को बढ़ा देते हैं. व्यक्ति की जीवन शैली तथा आम जीवन उसका व्यवहार भी इन रोगों के होने की संभावना को निर्धारित करते हैं. हृदयरोग के कारण  हृदयरोग होने का प्रमुख कारण है खान-पान संबंधी ग़लत आदतें, अधिक समय बैठे रहना, व्यायाम या शारीरिक परिश्रम ना करना, अधिक चिंता करना, समय पर ना सोना इत्यादि. नवीनतमशोथ के अनुसार, फसलों में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक, केमिकल खाद, चीनी से लैस भोजन, फास्ट फुड, तनावग्रस्त जीवन जीने से सर्वाधिक रूप से हो रहे हैं. अब मॉडर्न मेडिसिन (modern medicine) के विशेषज्ञ भी यह समझते हैं की आयुर्वेद द्वारा हृदय रोगों को जड़ से मिटाया जा सकता है. अनियमित एवं गरिष्ठ, तले, अत्यधिक चीनी-युक्त भोजन का नियमित सेवन करने से और लगातार बैठे रहकर काम करने से हृदय रोग की उत्पत्ति होती है. यद

थायरायड (Thyroid Disorder) की बीमारी का आयुर्वेदीय इलाज

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थायरायड की बीमारी:  हयपोथायरॉइडिज़म (Hypothyroidism) की बीमारी ज़्यादातर स्त्रीयों में पाई जाती है जिससे कि उनका आंतरिक चयपचय (metabolism) औसत से काफ़ी कम हो जाता है. आयुर्वेदीय चिकित्सा द्वारा इस रोग का निवारण भली-भाँति प्रकार किया जा सकता है. चयपचय की क्रिया को नियंत्रित करना थायराइड ग्रंथि का कार्य होता है और इसके द्वारा ही हम शरीर में लिया गया भोजन, जल और प्राण वायु कोशिकायों में सही रूप से चयपचय होकर उर्जा का स्रोत बनता है. छोटी अवशेषों में बाँटने के उपरांत उनका पुनर्संगठित होकर नवनिर्माण करना भी इस ग्रंथि के द्वारा स्रावित हॉर्मोन से संतुलित किया जाता है. जिस प्रक्रिया द्वारा शरीर में सुगठित तत्वों का निर्माण होता है उसे एनाबोलीज़म या चय कहा जाता है जबकि विघटन करने वाली प्रक्रिया को कॅटबॉलिज़म या पचय कहा जाता है. इन दोनो प्रक्रियायों के मिलन से उत्पन्न कार्य को मेटाबोलीज़म (metabolism) या चयपचय कहा जाता है. जब व्यक्ति पूर्णतयः विश्राम की स्थिति में होता है तब आधारिक चयपचायी मान (Basal Metabolic Rate)- BMR की दर को लेना संभव है. यह व्यक्ति की स्वास्थ का माप है और य

आयुर्वेद द्वारा गठिये (Arthritis) का उपचार

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यह रोग आयुर्वेद की दृष्टि से आम और वात के प्रकोप के कारण होता है. आम का निर्माण अपच के कारण होता है. यह शरीर के कमज़ोर हिस्सों में जाकर एकत्रित हो जाता है. जब यह स्तिथि वात दोष के साथ जुड़ती है तो आमवात उत्पन्न होता है. गठिये का उपचार इस रोग के उपचार के लिए आम को पचाना तथा वात को शांत करना है. पाचन शक्ति को मजबूत करने से आम की उपत्ति को रोकना चाहिए. उपवास रखने से इस रोग में लाभ मिलता है. उपवास की अवधि व्यक्ति के स्वास्थ और शक्ति पर निर्भर करती है. जीर्ण व्यक्ति को उपवास नही करना चाहिए अपितु हल्का सुपाच्य भोजन लेना ही उसके लिए हितकर है. 250 मिली पानी में 2 चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच शहद दिन में दो बार लेना चाहिए. सरसों या तिल के तेल से शरीर की हल्की मालिश वात को शांत करने में सहायता देती है. ख़ासकर प्रभावित जोड़ों पर मालिश को अधिक देर तक करें. हल्का व्यायाम करना भी लाभदयक है परंतु यदि दर्द होने लगे तो व्यायाम वही रोक देना चाहिए. नींबू की शिकंजवी या संतरे का रस पीना भी लाभ देता है. प्राकृतिक रूप से उपलब्ध विटामिन सी के सेवन से हड्डियों के दर्द में लाभ मिलता है. ग

What is stress?

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Stress is the body's natural defense against predators and danger. It flushes the body with hormones to prepare systems to evade or confront danger. This is known as the "fight-or-flight" mechanism. Changes to the body Stress slows normal bodily functions, such as the digestive and immune systems. All resources can then be concentrated on rapid breathing, blood flow, alertness, and muscle use. The body changes in the following ways during stress: blood pressure and pulse rate rise breathing is faster the digestive system slows down immune activity decreases the muscles become tense a heightened state of alertness prevents sleep Causes We all react differently to stressful situations. What is stressful to one person may not be stressful to another. Almost anything can cause stress. For some people, just thinking about something or several small things can cause stress. Common major life events that can trigger stress include: job issues or retireme

Health Effects of Cigarette Smoking

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Smoking and Cardiovascular Disease Smokers are at greater risk for diseases that affect the heart and blood vessels (cardiovascular disease). Smoking causes stroke and coronary heart disease, which are among the leading causes of death in the United States. Even people who smoke fewer than five cigarettes a day can have early signs of cardiovascular disease. Smoking damages blood vessels and can make them thicken and grow narrower. This makes your heart beat faster and your blood pressure go up. Clots can also form. A stroke occurs when: A clot blocks the blood flow to part of your brain; A blood vessel in or around your brain bursts. Blockages caused by smoking can also reduce blood flow to your legs and skin. Smoking and Respiratory Disease Smoking can cause lung disease by damaging your airways and the small air sacs (alveoli) found in your lungs. Lung diseases caused by smoking include COPD, which includes emphysema and chronic bronchitis. Cigarette smoking causes mo

रक्तदाब

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रक्तदाब हा आभिसरण होत असलेल्या रक्ताव्दारे रक्तवाहिन्यांच्या आतील भिंतींवर पडणारा दबाव होय. धमन्या या हृदयातून शरीरातल्या सर्व उती आणि अवयवांना रक्तपुरवठा करतात. हृदयातून धमन्यांमधे रक्त ढकलले जाण्यामुळं आणि धमन्यांव्दारे या रक्ताच्या प्रवाहाला दिला जाणारा प्रतिसाद यांच्या परिणामी रक्तदाब निर्माण होतो. परंपरेनुसार, एखाद्या व्यक्तीचा रक्तदाब हा सिस्टॉलीक । डायस्टॉलीक असा व्यक्त केला जातो, उदाहरणार्थ, 120 / 80. हृदयाचे स्नायू आकुंचन पावून धमन्यांमधे रक्त ढकलले जाते तेव्हा धमन्यांच्या आतल्या भिंतीवर निर्माण झालेला दाब म्हणजे सिस्टॉलीक रक्तदाब (वरची संख्या) होय. आकुंचनानंतर हृदयाचे स्नायू शिथील होतात त्यावेळेला धमन्यांमधील दाब म्हणजे डायस्टॉलीक रक्तदाब (खालची संख्या) होय. हृदय जेव्हा रक्त पंप करत असतं त्यावेळेला रक्तदाब हा उच्च असतो, ते शिथिल असतं तेव्हा नाही. बहुतांश सुदृढ प्रौढांसाठी सिस्टॉलीक रक्तदाब हा पा-याच्या 90 आणि 120 मिलीमीटर्स दरम्यान (ml) असतो. सामान्य डायस्टॉलीक रक्तदाब हा 60 आणी 80 सस फु दरम्यान असतो. विद्यमान मार्गदर्शक सूचनांनुसार सामान्य रक्तदाब हा 120 / 80 पेक्ष

तंबाखू सेवनाचे दुष्परिणाम

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तंबाखूमुळे कँसर (कर्करोग) होऊ शकतो तंबाखूच्‍या सेवनामुळे तोंडाचा, घशाचा, फुफ्फुसाचा, पोटाचा, किडनीचा, किंवा मूत्राशयाचा इत्यादि कँसर (कर्करोग) होऊ शकतात. तथ्य आधार भारतात तंबाखूच्‍या सेवनामुळे तोंडाचा कँसर (कर्करोग) असलेल्‍या रूग्‍णांची संख्‍या सर्वांत मोठी आहे. भारतात, ५६.४ % स्त्रियांना आणि ४४.९ % पुरुषांना तंबाखूमुळे कर्करोग झाल्याचे आढळून आले आहे. ९०% पेक्षा जास्त फुफ्फुसाचा कॅन्‍सर आणि इतर कँसर होण्‍याचे कारण धूम्रपान आहे. तंबाखूमुळे ह्दय आणि रक्त वाहिन्‍यांचे विकार तंबाखूमुळे ह्दय आणि रक्त वाहिन्‍यांचे विकार, ह्दयरोग, छातीत दुखणे, हदयविकाराच्‍या झटक्‍यामुळे अचानक मरण येणे, स्ट्रोक (मेंदूचा विकार), परिधीय संवहनी रोग (पायाचा गैंग्रीन) हे रोग होतात. तथ्य आधार भारतात ८2 % फुफ्फुसाच्‍या दीर्घकालीन रोगांचे कारण धूम्रपान हे आहे. तंबाखू हे क्षयरोग होण्‍याचे अप्रत्यक्ष कारण आहे. कधी-कधी धूम्रपान करणा-यांमध्ये देखील टीबी, ३ पट अधिक आढळतो. सिगरेट किंवा बीड़ीचे धूम्रपान, जितके अधिक, तितके अधिक टीबीचे प्रचलन वाढू शकते. धूम्रपान/ तंबाखूचे सेवन अचानक रक्तदाब वाढविते आणि हदयाकडे ज

अ‍ॅलर्जी

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अ‍ॅलर्जी म्हणजे निसर्गात असलेल्या काही घटकांना शरीर प्रतिबंध करते, त्यालाच अ‍ॅन्टीजेन असेही म्हणतात. प्रतिकारशक्ती कमी झाल्याने दिसून येणारी लक्षणं म्हणजे श्वास लागणे, कफ, शिंका, वाहणारे नाक आणि खवखवणारा घसा, त्वचेवर रॅश(पुरळ) उठणे, खाज येणे, पित्त इ. अनेक केसेसमध्ये याची परिणती रक्तदाब कमी होणे, दम्याचा त्रास उसळणे किंवा कधी कधी मृत्यू होण्यातही होते. अ‍ॅलर्जी टाळण्यासाठी चाचणी आवश्यक असून यातून पुढे होणारी हानी टाळता येते आणि योग्यवेळी अचूक औषधं देण्याचा सल्ला महत्त्वपूर्ण असतो. अ‍ॅलर्जीसंबंधी चाचणीत स्किनिंग टेस्ट केली जात असून यातून संबंधित व्यक्तीला अ‍ॅलर्जी आहे की नाही हे समजून येते. चाचणीचा निष्कर्ष जर सकारात्मक आला तर लक्षणं, वय, वातावरण, भौगोलिक परिस्थिती, वैद्यकीय इतिहास या सर्वानुसार रुग्णाला पॅनल टेस्टला सामोरे जावे लागतं. यातूनच नेमका अ‍ॅलर्जीचा त्रास संबंधित व्यक्तीला का होत आहे हे दिसून येतं. विविध प्रकारची पॅनल्स असून यामध्ये गंध, अन्न, पर्यावरण, भौगोलिक परिस्थिती आदींचा समावेश असून ७०० हून अधिक प्रकारच्या अ‍ॅलर्जी आपल्याला चाचण्यांमधून दिसून आल्या आहेत. ही पद्धती

Why everyone should eat banana daily

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Why everyone should eat banana daily : Banana plant give fruit only once. All the nutrients and minerals absorbed from the soil and all food prepared by tree is given to one banana flake and the tree dies after that.  Banana is a tiny pack of all the nutrients you need for a quick recharge.  Contain fruit sugar fructose that is low glycemic index (GI =19) sugar. Slowly releases sugar in blood. Rich in fibres and pectin. Doesn't allow your blood sugar to raise sharply. Beneficial in constipation, diarrhoea and IBS (irritable bowl syndrome) Presence of plant sterols reduces cholesterol level High in electrolytes, rich in potassium (k) ensures that blood pressure doesn't rise. High Vitamin B6 level enhances metabolism Banana is stomach soother, acts as pre-biotic food that improves our gut health The minerals, vitamins and electrolytes helps in strengthening bones So eat banana daily - If you want to get energy back If you want to lo

आरोग्य विषयक सामान्य माहिती ...

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1.आयुर्वेदामध्ये “अनुपान” अशी एक संकल्पना आहे. म्हणजे औषध एकच पण ते वेगवेगळ्या पदार्थांबरोबर दिल्याने त्याचे गुणधर्म बदलतात. 2.आवळ्याच्या मोसमामध्ये आवळा आणि साखरेचा पाक यांचा उत्तम संयोग असलेला मोरावळा तयार करून आम्लपित्ताचा नेहमी त्रास असणा-यांनी खावा. 3.आपल्या देशातील बहुतांश लोकांना व्हिटामिन 'डी' ची कमतरता आहे .याची कल्पना पण नसते. या कमतरते मुळे कोणत्याही मोठ्या आजाराची सुरुवात होऊ शकते . 4.चिंचेच्या कोळामध्ये डाएटरी फायबर्स मुबलक प्रमाणात आढळतात. यामुळे बद्धकोष्ठतेचा त्रास कमी होण्यास मदत होते. 5.नैसर्गिक दात असतांना अन्नात मिसळनारी लाळ भरपूर आणि योग्य प्रमाणात असते . नवीन दात किंवा कवळी लावण्यानंतर तोंडामध्ये लाळ निर्मिती चे प्रमाण कमी होत असते . 6.बैठी जीवनशैली व गरजेपेक्षा अधिक आहार, बदलत्या जीवनशैलीमुळे सोयीसुविधा मिळतात मात्र नव्या व्याधींना निमंत्रणही मिळते. 7.तंत्रज्ञान आपले आयुष्य सोपे बनवते; पण आपण तंत्रज्ञानाच्या अतिवापराने तणावाला निमंत्रण देतो आणि दुखणे विकत घेतो. 8.स्तनपानाच्या काळात आईच्या रक्तातील लोहाचं(iron) प्रमाण कमी होत जातं

आपल्या शरीराविषयक महत्वाची माहीती

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१ . मानवी डोक्याचे वजन: - १४०० ग्रॅम.  २ . सामान्य रक्तदाब : - १२०/८० मि. मी. पा-याची उंची.  ३ . शरीरातील सर्वात मोठी पेशी : - न्यूरॉन.  ४ . लाल रक्त पेशींची संख्या : - पुरुष : - ५ ते ५.५ मिलियन/क्युबीक सेमी. स्ञिया : - ४.५ ते ५ मिलियन/क्युबीक सेमी.  ५ . शरिरातील एकूण रक्त : - ५ ते ६ लीटर.  ६ . सर्वात लहान हाड : - स्टेटस ( कानाचे हाड )  ७ . सर्वात मोठे हाड : -फिमर / थाय बोन ( मांडीचे हाड )  ८ . लाल रक्तपेशींचा जीवनकाळ : - १२० दिवस.  ९ . पांढरा-या रक्तपेशींचा संख्या : - ५००० ते १०००० प्रति घ. सेमी.  १० . पांढरा-या रक्तपेशींचा जीवनकाळ : - २ ते ५ दिवस.  ११ . रक्तातील प्लेटलेट्स माऊंट : -२ लाख ते ४ लाख क्युबीक सेमी.  १२ . हिमोग्लोबिनचे प्रमाण : - पुरुष - १४ ते १६ ग्रॅम/१०० घसेमी.  स्ञिया - १२ ते १४ ग्रॅम/१०० घसेमी.  १३ . ह्रदयाचे सामान्य ठोके : - ७२ ते ७५ प्रति मिनिट.  १४ . नाडी दर (पल्स रेट) : - ७२ प्रतिमिनिट.  १५ . सर्वात मोठी अंत: स्ञाव ग्रंथी : - थायरॉईड ग्रंथी.  १६ . सर्वात मोठा स्नायू - ग्लुटियस म्याक्स

१०० वर्षे निरोगी जगण्याचा मंत्र

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१) वात २) पित्त ३) कफ वरील दोष समप्रमाणात ठेवणे यालाच निरोगी म्हणतात .यामध्ये बिघाड झाला की आपल्याला त्या दोषाचा आजार होतो. यावर उपाय म्हणजे आपली जीवनशैली थोड़ी बदलली की आपल्याला त्याचे चांगले परिणाम अनुभवायला मिळतात आपण नुसते बोलतो की जुने लोक जास्त वर्ष जग़ायचे पण आपण हे कधी पाहिले नाही की ते लोक एवढे वर्ष तंदुरुस्त कसे जगायचे ?  त्यासाठी हे वाचुन कृतीत आणा, जादु होईल १) सकाळी लवकर उठावे म्हणजे *ब्रह्ममुहूर्तावर ४.३० ते ५.०० या वेळेत उठावे. २) दात घासण्याआधी कोमट पाणी हळुवारपणे प्यावे म्हणजे तोंडातील सर्व लाळ पोटात जावी याप्रमाणे *१- ३ ग्लास पाणी खाली बसुनच प्यावे. (अनेक रोग दूर होतात) ३) पाणी पिल्यावर पोटावर दाब पडतो आणि प्रार्तविधी करुन घ्यावा. ४) त्यानंतर दात घासावे त्यामध्ये कडु निंबाची काडी,आंब्याची काड़ी, करंजेची काड़ी, बाभळीची काड़ी ई. किंवा कोणतेही स्वदेशी दंतमंजन किवा स्वदेशी पेस्ट वापरु शकता. (पंचगव्य दंतमंजन) दंत रोग दूर राहतात ५) नंतर अंघोळ करावी शक्यतो थंड पाणी किंवा कोमट पाणी वापरावे. अंघोळ करताना गरम पाणी कधीच वापरु नये. ६) सका