हृदयरोग

[Heart Or Cardiovascular Diseases]
हृदयरोग आज के युग में मृत्यु का प्रमुख कारण है. पहले यह समस्या समृद्ध देशों में अधिक पाई जाती थी परंतु अब इसका प्रकोप प्रगतिशील देशों में भी देखने को मिलता है. उच्च रक्तचाप , मधुमेह, परिवारिक आनुवांशिक कारण, धूम्रपान, ये सब इस रोग की संभावना को बढ़ा देते हैं. व्यक्ति की जीवन शैली तथा आम जीवन उसका व्यवहार भी इन रोगों के होने की संभावना को निर्धारित करते हैं.

हृदयरोग के कारण 

Image result for हृदयरोगहृदयरोग होने का प्रमुख कारण है खान-पान संबंधी ग़लत आदतें, अधिक समय बैठे रहना, व्यायाम या शारीरिक परिश्रम ना करना, अधिक चिंता करना, समय पर ना सोना इत्यादि.

नवीनतमशोथ के अनुसार, फसलों में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक, केमिकल खाद, चीनी से लैस भोजन, फास्ट फुड, तनावग्रस्त जीवन जीने से सर्वाधिक रूप से हो रहे हैं. अब मॉडर्न मेडिसिन (modern medicine) के विशेषज्ञ भी यह समझते हैं की आयुर्वेद द्वारा हृदय रोगों को जड़ से मिटाया जा सकता है.

अनियमित एवं गरिष्ठ, तले, अत्यधिक चीनी-युक्त भोजन का नियमित सेवन करने से और लगातार बैठे रहकर काम करने से हृदय रोग की उत्पत्ति होती है.
यदि पाचन क्रिया ठीक ना हो तो यह हृदय रोगों की उत्पत्ति का कारक बन जाती है. जो खाना शरीर में ठीक से नही पचता, उससे आम (acidic toxins) की उत्पत्ति होती है. यह आम रक्त में जस्ब होकर ‘साम’ का निर्माण करता है. यह पदार्थ रक्त को सामान्य से गाढ़ा बना देता है जिससे धमनियों के स्रोतों में ‘आम’ जम जाता है, ख़ासकर उन हिस्सों में जहा पहले से कोई कमज़ोरी हो.

इस तरह रक्त धमनियों की व्यास कम हो जाता है और परिणाम स्वरूप रक्त के वहन से सामान्य से अधिक दबाव का निर्माण हो जाता है. यह बढ़ा हुआ दबाव ही उच्च रक्तचाप का रूप लेता है. इससे रक्त धमनियाँ अधिक मोटी और सख़्त हो जाती है इस रोग को अंजीयोसक्लेरोसिस (angiosclerosis) कहा जाता है. यदि रक्तचाप बढ़ा हुआ ही रहे तो रक्त में मौजूद आम और कोलेस्टरॉल धमनियों की दीवारों पर जमा होते रहतें हैं. इससे धमनियाँ और संकरी हो जाती हैं, भोजन में अधिक चीनी से रक्त वाहिनी की आंतरिक परत पर इनफ्लमेशन (जलन) होती है जिससे वहाँ पर रक्त में मौजूद एल डी एल जम जाता है और खुरदरी परत का निर्माण कर देता है. इससे (धमनी में) रक्त का थपका (clot) बन जाता है. यह थपका रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न करता है. परिणामस्वरूप यह जिस हिस्से में होता है वहाँ रक्त के वहन में अवरोध होता है. यदि ऐसा हृदय की धमनी में हो, तो हार्ट अटॅक हो जाता है. इसी प्रकार अगर यह दिमाग़ की नसों में हो, तो ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है. गौरतलब है यह इनफ्लमेशन मैदे से बनी चीज़ों का अधिक सेवन करने से और वेजिटेबल आयिल (vegetable oil) में पके भोजन से भी उत्पन्न होती है.

आयुर्वेद द्वारा हृदय- संबंधी रोगों की चिकित्सा 

मॉडर्न मेडिकल साइंस के अनुसार हृदय रोग जैसी व्याधियाँ क्रॉनिक डिसीज़स (chronic diseases) के क्षेत्र में आती हैं जिन्हे सिर्फ़ नियंत्रण में रखा जा सकता है. लगभग ३ दशक पहले इन रोगों को अपराजेय (untreatable) माना जाता था. परंतु आयुर्वेद के अनुसार यदि कुशलता पूर्वक इनका इलाज किया जाए तो ये रोग ठीक हो सकते हैं. रोगी के आत्मविश्वास और स्वयं के स्वास्थ के प्रति निष्ठा पर भी निर्भर करता है कि वह रोग से कितनी रोग शीघ्र मुक्त हो जाता है. कुछ साधारण प्रयोगों द्वारा हृदय के स्वस्थ को बढ़ाया जा सकता है. ना सिर्फ़ इनके द्वारा रोग को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है अपितु यह पाया गया है की रोग जड़ से समाप्त हो जाता है, धमनी में उत्पन्न अवरोध पूरी तरह से खुल जाते हैं और व्यक्ति एक स्वस्थ जीवन जी सकता है.
त्रिफला गुग्गूल के उपयोग द्वारा रक्त-वहिनियों में जमा हुआ आम और वसा बाहर आ जाते हैं और स्रोतों को पोषण भी प्राप्त होता है.
अमला का नित्य प्रयोग करने से रक्त में antioxidants की मात्रा बढ़ती है जिससे धमनियों की free-radicals से सुरक्षा होती है. अमला हृदय तथा धमनियों का उचित पोषण कर उन्हें मजबूत बनता हैं. अमला का उपयोग च्याव्ानप्राश नामक रसायन मे प्राचुर्य में किया गया है. यह फल हृदय में अवरोध को घटाकर रक्त के दौरे को बढ़ाने में मदद देता है.

पथ्य और अपथ्य 

  • पोशक तत्वों से भरपूर भोजन लेना बहुत ज़रूरी है.
  • रेफाइंड तेल (refined oils), LDL युक्त वेजिटेबल तेल (vegetable oils) का प्रयोग नही करना चाहिए. वेजिटेबल आयिल्स में पाए जाने वाले लिपिड्स (lipids) हृदय के स्वास्थ के लिए हानिकारक हैं.
  • आपको जानकार शायद हैरानी हो की प्राकृतिक मक्खन या गाय के दूध से बने घी के सेवन से रक्त धमनियों को रक्षक परत मिलती है जिससे रक्त में मौजूद शुगर से इनमें (धमनियों) इनफ्लमेशन (inflammation) नहीं होती. (विचार-योग्य है कि इनफ्लमेशन के कारण ही रक्त का थपका धमनी में निर्मित होता ही जिससे रक्त के दौरे में अवरोध पैदा होता है). ये EFA (essential fatty acids) और HDL का स्रोत भी हैं.
  • साबुत या छिलके वाली दालें, साबुत अनाज तथा ताज़ा फल, सब्जियाँ और HDL, EFA (essential fatty acids) युक्त भोजन को लेना हृदय के स्वास्थ के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
  • सुबह का नाश्ता तथा रात्रि का भोजन हल्का और सुपाच्य होना चाहिए. दोपहर के भोजन थोड़ा गरिष्ठ हो सकता है.
  • दूध से बने पदार्थ, तथा ठंडा बासी भोजन नही लेना चहिये.
  • मैदा तथा उससे बने सभी पदार्थ अपथ्यकर हैं (नहीं खाने योग्य).
  • माँस, शराब तथा धूम्रपान के सेवन से रक्त में अम्लता (acidity) बढ़ती है और जीव विष (toxins) उत्पन्न होते हैं जिससे हृदयरोगी को बचना चाहिए.
  • अंकुरित अन्न, कॉटेज चीज़, गाय के दूध से बना देसी घी, ताज़ा दूध, हृदय रोगी के लिए पथ्यकर हैं (खाने योग्य).
  • बहुत अधिक खाने से बचना चाहिए तथा भूख लगने पर ही आवश्यकता अनुसार भोजन करें. पेट भरकर खाना स्वस्थ के लिए हानिकारक है अतः भूख से कुछ कम ही खाना चाहिए. इससे हृदय-संबंधी रोगों में और उच्च रक्तचाप में आराम मिलता है.

    आयुर्वेद में निहित हृदय-रोग संबंधी औषधीय प्रयोग 

  • रसोना या लहसुन के सेवन से उच्च रक्तचाप के नियंत्रण मेी साहयता मिलती है. लस्सी में 1 ग्राम लहसुन का पेस्ट डालकर दिन में 2 बार पीना चाहिए. लहसुन का तत्व बढ़े हुए कोलेस्टरॉल को नियंत्रित करता है.
  • मेथी दाना का एक चम्मच रात को सोने से पूर्व भिगो दें. प्रातः काल में खाली पेट इस मेथी दाना को चबाकर खाना चाहिए.
  • त्रिफला चूर्ण सुबह शहद के साथ लेने से भी रक्त की शुद्धि और उच्च रक्तचाप से मुक्ति मिलती है.
  • अर्जुन की छाल के प्रयोग से भी हृदय रोग में लाभ मिलता है. और रक्त के दौरे को अवरोध मुक्त होने में सहायता मिलती है. अर्जुन हृदय को पुष्ट करने में भी सहायता देती है. 30 ग्राम अर्जुन की छाल और 15 ग्राम गेहूँ के आटे को गाय के दूध से बने देसी घी में भुन लें. इसमें थोड़ा सा गाय का दूध मिलायें और इस मिश्रण को थोड़ी देर पकाएँ और फिर इस में पानी डाल दें. इस हलवे के सेवन से हृदय रोगों में लाभ मिलता है.
  • त्रिफला गुग्गूल के सेवन से धमनियों में जमा आम और लिपिड्स को निकाला जा सकता है.
  • एक कप दूध के साथ 1 ग्राम अर्जुन की छाल का सेवन दिन में एक बार करें.
  • गुलकंद का सेवन से भी हृदय को पुष्ट करने के साथ-साथ बढ़ी हुई धड़कन को नियंत्रित रखने में साहायता करता है.
  • शहद के नित्य सेवन से भी हृदय को पोषण प्राप्त होता है.
  • अनार के रस को रोज़ पीने से दिल की बीमारियों से निजात मिलती है. अनार के सूखे हुए पत्तों का चूर्ण बनाकर ताजे पानी के साथ सेवन करना चाहिए. इस प्रयोग से धमनियों में जमा मल सुरक्षित रूप से शरीर से निकल जाता है.

    हृदय रोग से बचाव 

  • शाकाहारी भोजन का सेवन और माँस, मदिरा तथा धूम्रपान निषेध से हृदय रोग की संभावना बहुत कम हो जाती है.
  • चाय, कॉफी तथा कॅफीन युक्त पेय अधिक मात्रा में नहीं लेने चाहिए.
  • नियमित व्यायाम, फुर्तीली सैर (brisk walking), जॉगिंग, तैराकी से भी हृदय रोग की संभावना कमतर होती है.
  • योगासनों का नित्य अभ्यास हृदय और तंत्रिका तंत्र दोनों को स्फूर्तिवान और मज़बूत बनाता है. योगासन के बाद नाड़ी शोधन प्राणायाम का रोज़ अभ्यास किया जाए तो मानसिक, अध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ में चमत्कारिक लाभ मिलता है. विपरीतकरणी, सर्वंगासन, अधोमुखशवानासान, पश्चिमोत्तनासन तथा अन्य आसनों का अभ्यास किसी योग्य आचार्य से सीख कर करना चाहिए. आसनों के क्रम के अंत में शवासन द्वारा खुद को विश्रान्ति देना न भूलें. 

  • सावधानी: योगासन कुशल योगचार्य से सीख कर अथवा उनके दिशानिर्देश में ही करें. किताब या अन्य सोशियल मीडीया को देखकर आसान अभ्यास नही करना चाहिए.
  • इसके अलावा व्यवहार में सरलता, प्रेम, मधुरता लाने से शरीर के लिए भी बहुत सुखदायक है. इससे हम व्यर्थ झगड़ों से बचते है और आंतरिक बल का सृजन भी होता है.
  • मस्तिष्क को शांत रखने से उच्च रक्तचाप बढ़ने से बचता है. यदि अधिक क्रोध आता हो तो स्वासों पर ध्यान केंद्रित करने से इस व्यावहारिक कष्ट से निवृत्ति मिलती है. व्यवहार को सौम्या बनाने की चेष्टा करें. खुल के हसना हृदय के लिए अच्छा है. यदि रोना भी आए तो खुल के रो लें और मानसिक वेगो से स्वयं को मुक्त रखिएं, उन्हे दबाएँ नहीं.
  • त्रिफला का सेवन शहद के साथ प्रातः काल उठकर करने से रक्त में मौजूद आम से निवृत्ति प्राप्त होती है और हृदय को पोषण भी मिलता है.
  • ताज़ा आँवला से निकले हुए रस का सेवन रोज़ करने से हृदय को पुष्टि और स्वास्थ में वृद्धि होती है.

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