आयुर्वेद द्वारा गठिये (Arthritis) का उपचार
यह रोग आयुर्वेद की दृष्टि से आम और वात के प्रकोप के कारण होता है. आम का निर्माण अपच के कारण होता है. यह शरीर के कमज़ोर हिस्सों में जाकर एकत्रित हो जाता है. जब यह स्तिथि वात दोष के साथ जुड़ती है तो आमवात उत्पन्न होता है.
गठिये का उपचार
इस रोग के उपचार के लिए आम को पचाना तथा वात को शांत करना है. पाचन शक्ति को मजबूत करने से आम की उपत्ति को रोकना चाहिए.
उपवास रखने से इस रोग में लाभ मिलता है. उपवास की अवधि व्यक्ति के स्वास्थ और शक्ति पर निर्भर करती है. जीर्ण व्यक्ति को उपवास नही करना चाहिए अपितु हल्का सुपाच्य भोजन लेना ही उसके लिए हितकर है. 250 मिली पानी में 2 चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच शहद दिन में दो बार लेना चाहिए.
- सरसों या तिल के तेल से शरीर की हल्की मालिश वात को शांत करने में सहायता देती है. ख़ासकर प्रभावित जोड़ों पर मालिश को अधिक देर तक करें.
- हल्का व्यायाम करना भी लाभदयक है परंतु यदि दर्द होने लगे तो व्यायाम वही रोक देना चाहिए.
- नींबू की शिकंजवी या संतरे का रस पीना भी लाभ देता है. प्राकृतिक रूप से उपलब्ध विटामिन सी के सेवन से हड्डियों के दर्द में लाभ मिलता है.
- गुग्गूल का उपयोग भी इस व्याधि के नाश में सहायक है परंतु चर्मरोग अथवा गुर्दे की बीमारी से प्रभावित रोगियों में इसका सेवन निषिद्ध है.
पथ्य-अपथ्य
- हल्के व सुपाच्य भोजन को ग्रहण करना चाहिए. जिस भोजन को खाकर वायुआदि विकार (गॅस) उत्पन्न हों, वे ग्रहण नही करने चाहिए.
- ब्राकोली, चुकंदर, खीरे आदि का रस पीना अत्यंत लाभकर है. सेब, संतरा, अंगूर, पपीता इन सब फलों का सेवन भी लाभकर है. परवल, तोरी, कद्दू- इन सब्जियों को पका कर खाना चाहिए. पकाते समय जीरा, धनिया, आद्रक, हींग, लहसुन, सौंफ और हल्दी का प्रयोग करना चाहिए.
- गर्म तासीर के, तीक्ष्ण, मसालेदार, तथा तले और वायु उत्पन्न करने वाले भोजन का सेवन नही करना चाहिए. पत्तागोभी, फूलगोभी, पालक, ब्राकोली, आलू, भिंडी का सेवन संधिवत में हानिकारक है. चाय, कॉफी, दही, मदिरा, चीनी, चॉक्लेट और धूम्रपान भी रोगी के लिए वर्जित है.
- रात्रि में अधिक देर तक जागे रहना, प्रातः काल ना उतना, दिन में शयन करना, अत्यधिक सोचना और चिंता करना, मानसिक तनाव- इन सबसे से संधिवात में अभिवृद्धि होती है.
- नित्य रूप से व्यायाम, हल्की सैर, तेल मालिश को साप्ताह में कम-से-कम दो दिन करना आवश्यक है.
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